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निर्गुण काव्यधारा

हिन्दी साहित्य में संत कवि जिस विचारधारा को लेकर अपनी वाणी की रचना में प्रवृत्त हुये हैं उनका मूल सिद्ध तथा नाथ साहित्य में है। कई संत कवियों ने अपनी भाव-विभोर वाणी द्वारा आध्यात्मिक साधना तथा भक्ति अभ्युत्थान का कार्य किया। संतों ने मानव जीवन पर जोर देते हुये उसको सार्थक करने हेतु सत्संग, नामस्मरण, भजन-कीर्तन, पूजन-अर्चन, गुरू महत्व, साधना महत्व, योग महिमा, सद्वचन, माया निरूपण, संसार की असारता को दर्शाया है। ये बातें उन्होंने सरल भाषा में सहज रूप में कही हैं। मानव समुदाय में आस्था स्थापित करने और उसे अपनाने के लिए कई संतों ने निगुर्ण-सगुण साधना को अपनाया। इसमें अवतारवाद को स्वीकार कर लेने के फलस्वरूप सगुण साधना को एक साकार आलम्बन मिल जाता है, जिसके कारण उसे सामान्य अशिक्षित व्यक्ति भी सहज ही स्वीकार कर सकता है। निर्गुण साधना का आलम्बन निराकार है, फलस्वरूप वह जन साधारण के लिए ग्राह्य नहीं हो सकती। सामाजिक उपयोगिता की दृष्टि से सगुण साधना-निर्गुण साधना की अपेक्षा कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। किन्तु इस आधार पर निर्गुण साधना की सत्ता या महत्व के विषय में संदेह नहीं किया