सगुण
परम सत्ता जहां प्रकृति के बन्धन से मुक्त है, उसे निर्गुण और जहां बन्धनयुक्त है, उसे सगुण कहते हैं। सगुण में भी दो विभाग हैं। एक है उनका रूप और दूसरा अ-रूप। मनुष्य में जो बुद्धि, बोधि तथा मैं-पन आदि हैं, वे सब अ-रूप हैं। इन्हें देखा नहीं जा सकता। लेकिन मनुष्य को तो देखा जा सकता है। उसी तरह सगुण ब्रह्मा की भी बुद्धि, बोधि तथा ‘मैं-पन’ अ-रूप हैं। इसी कारण हम उसे देख नहीं सकते हैं। दूसरा है रूपयुक्त। जैसे व्यक्ति अपने मन या चित्त को नहीं देख सकता है। परन्तु जैसे, हाथी के बारे में सोचते समय उसके चित्त में हाथी का रूप साकार हो उठता है -इतना स्पष्ट कि मन उसे देख लेता है। इसलिए चित्त भी कभी अ-रूप है और कभी रूपयुक्त। वैसे ही परमात्मा का चित्त भी रूपयुक्त है -यह दृश्यमान जगत जिसे हम विश्व कहते हैं, उनके चित्त में उभरने वाली आकृति है। यह विश्व ही रूप का समुद्र है और जब यह विषय होगा तब मन सगुण ब्रह्मा हो जाएगा। जहां सीमा का बन्धन है, वहीं रूप है। जहां सीमा नहीं है, असीम है, वही अ-रूप है। यहां गुण रह भी सकता है और नहीं भी। जहां गुण है उसे सगुण और जहां गुण नहीं है, उसे निर्गुण कहते है