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सूरदास की रचनाएँ

1   अंखियां हरि-दरसन की प्यासी। देख्यौ चाहति कमलनैन कौ¸ निसि-दिन रहति उदासी।। आए ऊधै फिरि गए आंगन¸ डारि गए गर फांसी। केसरि तिलक मोतिन की माला¸ वृन्दावन के बासी।। काहू के मन को कोउ न जानत¸ लोगन के मन हांसी। सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौ¸ करवत लैहौं कासी।। —————————————————————————————————————- 2 निसिदिन बरसत नैन हमारे। सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।। अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे। कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहुँ, उर बिच बहत पनारे॥ आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे। ‘सूरदास’ अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे॥ —————————————————————————————————————- 3 मधुकर! स्याम हमारे चोर। मन हरि लियो सांवरी सूरत¸ चितै नयन की कोर।। पकरयो तेहि हिरदय उर-अंतर प्रेम-प्रीत के जोर। गए छुड़ाय छोरि सब बंधन दे गए हंसनि अंकोर।। सोबत तें हम उचकी परी हैं दूत मिल्यो मोहिं भोर। सूर¸ स्याम मुसकाहि मेरो सर्वस सै गए नंद किसोर।। —————————————————————————————————————- 4 बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजैं। तब ये लता लगति अति सीतल¸

सूरदास

सूरदास की जन्मतिथि एवं जन्मस्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद है। “साहित्य लहरी’ सूर की लिखी रचना मानी जाती है। इसमें साहित्य लहरी के रचना-काल के सम्बन्ध में निम्न पद मिलता है - मुनि पुनि के रस लेख । दसन गौरीनन्द को लिखि सुवल संवत् पेख ।। इसका अर्थ विद्वानों ने संवत् १६०७ वि० माना है, अतएव “साहित्य लहरी’ का रचना काल संवत् १६०७ वि० है। इस ग्रन्थ से यह भी प्रमाण मिलता है कि सूर के गुरु श्री बल्लभाचार्य थे - सूरदास का जन्म सं० १५३५ वि० के लगभग ठहरता है, क्योंकि बल्लभ सम्प्रदाय में ऐसी मान्यता है कि बल्लभाचार्य सूरदास से दस दिन बड़े थे और बल्लभाचार्य का जन्म उक्त संवत् की वैशाख् कृष्ण एकादशी को हुआ था। इसलिए सूरदास की जन्म-तिथि वैशाख शुक्ला पंचमी, संवत् १५३५ वि० समीचीन जान पड़ती है। अनेक प्रमाणों के आधार पर उनका मृत्यु संवत् १६२० से १६४८ वि० के मध्य स्वीकार किया जाता है।   रामचन्द्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत् १५४० वि० के सन्निकट और मृत्यु संवत् १६२० वि० के आसपास माना जाता है।   श्री गुरु बल्लभ तत्त्व सुनायो लीला भेद बतायो। सूरदास की आय