माता पिता को दिशा-निर्देश
किसी भी व्यक्ति के जीवन में परिवार प्राथमिक एकक हैं। और माता-पिता इस एकक के स्तम्भ हैं।
माता पिता और परिवार को कार्य-निष्पादन हेतु कतिदय उत्तरदायित्वों की पूर्ति करनी आवश्यक हैं। परिवार को आमदनी पैदा करनी चाहिए और अपने सदस्यों तथा घर को अनुरक्षित करना एवम् परस्पर प्रेम सौहार्द बनाये रखना तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों को समाजिक मानकों को सिखाया जाता हैं और उन्हें शिक्षित किया जाता हैं। जब एक बालक विकलांग हैं तो ये उत्तरदायित्व और भी अत्यावश्यक हो जाती हैं। विकलांग सदस्य की देखभाल और सुरक्षा के लिए धन, समय और ऊर्जा की आवश्यकता पडती हैं। इसके अतिरिक्त विकलांग व्यक्ति में आत्म्गौरव तथा सामाजिक कुशलता विकसित करने की समस्या के साथ साथ यह भी आवश्यक हैं कि विकलांग व्यक्ति समुचित रुप से शिक्षण प्राप्त करता हैं। प्रत्येक सामान्य काम भी अधिक कठिन तथा पर्याप्त तनावयुक्त बन जाता हैं।
सुजनन आन्दोलन (1880-1930) के अनुसार बालक के भौतिक, भावनात्मक अथवा बौध्दिक विकलांकता का स्रोत माता-पिता ही रहें। इस आन्दोलन का प्रथमिक लक्ष्य मानव प्रजनन के नियमन द्वारा मानवीय त्रुटियों को दूर करना था। 19 वीं शताब्दी में, अनुसन्धान द्वारा यह पाया गया कि माता-पिता द्वारद्घ कुछ विकलांगता /स्थितिया बच्चे तक आनुवांशिक रूप से पहुँचाई जाती हैं। किन्तु गर्भावस्था से पूर्व यह अभिनिश्चित करना कठिन ही नहीं लगभग असम्भव हैं कि माता-पिता द्वारा आनुवांशिक रूप से बच्चे में विकलांगता हस्तान्तरित की जायेगी।
तथापि, विकलांगता से पीडित बहुत से बच्चों में किन्ही आनुवांशिक कारकों की भी पहचान नहीं हो सकती हैं। फिर भी, इस स्थितियों में जन्मे बच्चों के माता पिताओं को दोष देना प्रजनक माता-पिता - व्यावसायिकों के बीच मधुर सम्बन्ध स्थापित नहीं कर पाता हैं। कुछ मामलों में विकलांगता के कारणों को माता-पिता से सम्बन्धित कुछ कारकों में खोजने से निदान करने में सहायक हो सकता हैं और साथ ही भविष्य में इस प्रकार के मामलों की रोक-थाम की जा सकती हैं।
विकलांगता के साथ बच्चे के जन्म पर माता-पिता की प्रतिक्रिया व्यापक रूप से अलग अलग हैं। अनुमानतया माता-पिता के 3 से 7 तक भावनात्मक स्तरों की सामान्यतया पहचान की जाती हैं। वे इस प्रकार हैं - (क) आघात तथा अविश्र्वास की भावना (ख) अस्वीकारना (ग) क्रोध तथा अपराधबोध या अवसा (घ) आत्मअवशोषण से हटकरके बच्चे की आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा करने पर ध्यान करने का विचार। क्या सभी माता-पिता इस प्रकार का अनुभव करते हैं यह स्तरों का सही क्रम यही होता हैं यह भी विवादास्पद हैं।
उपरोक्त स्थितियों को ध्यान में रखते हुए विकलांग बच्चे के माता-पिता बहुआदायगी भूमिकाऐं निभाते हैं जो एक दूसरें से पृथक नहीं और ना ही वे एक विशिष्ट या स्वतंत्र कालक्रमानुसार अवधियों में विभाजित किये जा सकते हैं, अपितु वे अधिकतर अतिव्याप्त हैं तथा एकसमान तत्वों के सहभागी हैं।
आधुनिक युग के चिकित्सकों तथा शिक्षकों ने माता-पिता की सम्माकताओं को स्वीकार किया हैं। इस समय माता-पिता न केवल व्यासायिक परामर्श के कार्यन्वयन में सक्रिय भागीदार हैं अपितु वे घर पर इस प्रकार की योजना बनाने व कार्यान्वयन हेतु सक्रिय हैं।
माता पिता और परिवार को कार्य-निष्पादन हेतु कतिदय उत्तरदायित्वों की पूर्ति करनी आवश्यक हैं। परिवार को आमदनी पैदा करनी चाहिए और अपने सदस्यों तथा घर को अनुरक्षित करना एवम् परस्पर प्रेम सौहार्द बनाये रखना तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों को समाजिक मानकों को सिखाया जाता हैं और उन्हें शिक्षित किया जाता हैं। जब एक बालक विकलांग हैं तो ये उत्तरदायित्व और भी अत्यावश्यक हो जाती हैं। विकलांग सदस्य की देखभाल और सुरक्षा के लिए धन, समय और ऊर्जा की आवश्यकता पडती हैं। इसके अतिरिक्त विकलांग व्यक्ति में आत्म्गौरव तथा सामाजिक कुशलता विकसित करने की समस्या के साथ साथ यह भी आवश्यक हैं कि विकलांग व्यक्ति समुचित रुप से शिक्षण प्राप्त करता हैं। प्रत्येक सामान्य काम भी अधिक कठिन तथा पर्याप्त तनावयुक्त बन जाता हैं।
सुजनन आन्दोलन (1880-1930) के अनुसार बालक के भौतिक, भावनात्मक अथवा बौध्दिक विकलांकता का स्रोत माता-पिता ही रहें। इस आन्दोलन का प्रथमिक लक्ष्य मानव प्रजनन के नियमन द्वारा मानवीय त्रुटियों को दूर करना था। 19 वीं शताब्दी में, अनुसन्धान द्वारा यह पाया गया कि माता-पिता द्वारद्घ कुछ विकलांगता /स्थितिया बच्चे तक आनुवांशिक रूप से पहुँचाई जाती हैं। किन्तु गर्भावस्था से पूर्व यह अभिनिश्चित करना कठिन ही नहीं लगभग असम्भव हैं कि माता-पिता द्वारा आनुवांशिक रूप से बच्चे में विकलांगता हस्तान्तरित की जायेगी।
तथापि, विकलांगता से पीडित बहुत से बच्चों में किन्ही आनुवांशिक कारकों की भी पहचान नहीं हो सकती हैं। फिर भी, इस स्थितियों में जन्मे बच्चों के माता पिताओं को दोष देना प्रजनक माता-पिता - व्यावसायिकों के बीच मधुर सम्बन्ध स्थापित नहीं कर पाता हैं। कुछ मामलों में विकलांगता के कारणों को माता-पिता से सम्बन्धित कुछ कारकों में खोजने से निदान करने में सहायक हो सकता हैं और साथ ही भविष्य में इस प्रकार के मामलों की रोक-थाम की जा सकती हैं।
विकलांगता के साथ बच्चे के जन्म पर माता-पिता की प्रतिक्रिया व्यापक रूप से अलग अलग हैं। अनुमानतया माता-पिता के 3 से 7 तक भावनात्मक स्तरों की सामान्यतया पहचान की जाती हैं। वे इस प्रकार हैं - (क) आघात तथा अविश्र्वास की भावना (ख) अस्वीकारना (ग) क्रोध तथा अपराधबोध या अवसा (घ) आत्मअवशोषण से हटकरके बच्चे की आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा करने पर ध्यान करने का विचार। क्या सभी माता-पिता इस प्रकार का अनुभव करते हैं यह स्तरों का सही क्रम यही होता हैं यह भी विवादास्पद हैं।
उपरोक्त स्थितियों को ध्यान में रखते हुए विकलांग बच्चे के माता-पिता बहुआदायगी भूमिकाऐं निभाते हैं जो एक दूसरें से पृथक नहीं और ना ही वे एक विशिष्ट या स्वतंत्र कालक्रमानुसार अवधियों में विभाजित किये जा सकते हैं, अपितु वे अधिकतर अतिव्याप्त हैं तथा एकसमान तत्वों के सहभागी हैं।
1. व्यावसायिक परामर्श के कार्यान्वयनकर्ता के रूप में माता-पिता
1970 के दशक में यह व्यापक धारणा थी कि माता-पिता व्यावसायिकों द्वारा किये गये निर्णयों को पूर्णरूपेण कार्यान्वित करें। यदि बच्चा विश्द्घेष शिक्षण कार्यक्रम में सन्तोषजनक ढंग से प्रगति नहीं कर पा रहा हैं तब यह माना जाता रहा हैं कि माता-पिता घर पर कार्यक्रम को कार्यान्व्ति करने के उत्तरदायित्व को नहीं निभा रहें हैं। "व्यावसायिकक सर्वसामर्थ्य की मिथ्याधारणा " यह यह धारणा कि अपनी विशेषीकृत प्रशिक्षण तथ तकनीकी तज्ञता के कारण व्यावसायि अन्य व्यक्तियों के जीवन से सम्बन्धित मामलों में विद्वतापूर्ण निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं धीरे धीरे ग हो गया हैं।आधुनिक युग के चिकित्सकों तथा शिक्षकों ने माता-पिता की सम्माकताओं को स्वीकार किया हैं। इस समय माता-पिता न केवल व्यासायिक परामर्श के कार्यन्वयन में सक्रिय भागीदार हैं अपितु वे घर पर इस प्रकार की योजना बनाने व कार्यान्वयन हेतु सक्रिय हैं।
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