रास

भारत के पश्चिमी भाग मे जैन साधुओ ने अपने मत का प्रचार हिन्दी कविता के माध्यम से किया । इन्होंने रास” को एक प्रभाव्शाली रचनाशैली का रूप दिया । जैन तीर्थंकरो के जीवन चरित तथा वैष्णव अवतारों की कथायें जैन-आदर्शो के आवरण मे रासनाम से पद्यबद्ध की गयी । अतः जैन साहित्य का सबसे प्रभावशाली रूप रासग्रंथ बन गये । वीरगाथाओं मे रास को ही रासो कहा गया किन्तु उनकी विषय भूमि जैन ग्रंथो से भिन्न हो गई । आदिकाल मे रचित प्रमुख हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है–
·     1. उपदेश रसायन रास- यह अपभ्रंश की रचना है एवं गुर्जर प्रदेश में लिखी गई हैं। इसके रचयिता श्री जिनदत्त सूरि हैं। कवि की एक और कृत्ति “कालस्वरुप कुलक१२०० वि. के आसपास की रही होंगी। यह “अपभ्रंश काव्य त्रयीमें प्रकाशित है और दूसरा डॉ. दशरथ ओझा और डॉ. दशरथ शर्मा के सम्पादन में रास और रासान्वयी काव्य में प्रकाशित किया गया है।
·     2. भरतेश्वर बाहुबलि रास- शालिभद्र सूरि द्वारा लिखित इस रचना के दो संस्करण मिलते हैं। पहला प्राच्य विद्या मन्दिर बड़ौदा से प्रकाशित किया गया है तथा दूसरारासऔर रासान्वयी काव्यमें प्रकाशित हुआ है। कृति में रचनाकाल सं. १२३१ वि. दिया हुआ है। इसकी छन्द संख्या २०३ है। इसमें जैन तीर्थकर ॠषभदेव के पुत्रों भरतेश्वर और बाहुबलि में राजगद्दी के लिए हुए संघर्ष का वण्रन है।
·     3. बुद्धि रासयह सं. १२४१ के आसपास की रचना है। इसके रचयित शालिभद्र सूरि हैं। कुछ छन्द संख्या ६३ है। यह उपदेश परक रचना है। यह भी रास और रासान्वयी काव्यमें प्रकाशित है।
·     4. जीवदया रास-यह रचना जालोर पश्चिमी राजस्थान की है। “रास और रासान्वयी काव्य में संकलित है। इसके रचयिता कवि आसगु हैं। सं. १२५७ वि. में रचित इस रचना में कुल ५३ छन्द हैं।
·     5. चन्दर वाला रास-जीवदया रास के रचनाकार आसगु की यह दूसरी रचना है। यह भी १२५७ वि. के आसपास की रचना है। यह श्री अगर चन्द नाहटा द्वारा सम्पादित राजस्थान भारतीमें प्रकाशित है।
·     6. रेवंतगिरि रासयह सोरठ प्रदेश की रचना है। रचनाकार श्री विजय सेन सूरि हैं। यह सं. १२८८ वि. के आसपास की रचना मानी जाती है। यह “प्राचीन गुर्जर काव्यमें प्रकाशित है।
·     7. नेति जिणद रास या आबू रास- यह गुर्जर प्रदेश की रचना है। रचनाकार पाल्हण एवं रचना काल सं. १२०९ वि. है।
·     8. नेमिनाथ रास- इसके रचयिता सुमति गण माने जाते हैं। कवि की एक अन्य कृति गणधर सार्ध शतक वृत्ति सं. १२९५ की है। अतः यह रचना इस तिथि के आसपास की रही होगी।
·     9. गय सुकमाल रास- यह रचना दो संस्करणों में मिली है। जिनके आधर पर अनुमानतः इसकी रचना तिथि लगभग सं. १३०० वि. मानी गई है। इसके रचनाकार देल्हणि है। श्री अगरचन्द नाहटा द्वारा सम्पादित “राजस्थान भारतीपत्रिका में प्रकाशित है तथा दूसरा
संस्करण “रास और रासान्वयीकाव्य में है।
·     10. सप्त क्षेत्रिसु रास- यह रचना गुर्जर प्रदेश की है। तथा इसका रचना काल सं. १३२७ वि. माना जाता है।
·     11. पेथड़ रास- यह गुर्जर प्रदेश की रचना है। रचना मंडलीक हैं।
·     12. कच्छूलि रास- यह रचना भी गुर्जर प्रदेश के अन्तर्गत है। रचना की तिथि सं. १३६३ वि. मानी जाती है।
·     13. समरा रास - यह अम्बदेव सूरि की रचना है। इसमें सं. १३६१ तक की घटनाओं का उल्लेख होने से इसका रचनाकाल सं. १३७१ के बाद माना गया है। यह पाटण गुजरात की रचना है।
·     14. पं पडव रास- शालिभद्र सूरि द्वारा रचित यह कृति सं. १४१० की रचना है। यह भी गुर्जर की रचना है। इसमें विभिन्न छन्दों की ७९५ पंक्तिया हैं।
·     15. गौतम स्वामी रास- यह सं. १४१२ की रचना है। इसके रचनाकार विनय प्रभु उपाध्याय है।
·     16. कुमार पाल रास- यह गुर्जर प्रदेश की रचना है। रचनाकाल सं. १४३५ के लगभग का है। इसके रचनाकार देवप्रभ हैं।
·     17. कलिकाल रास- इसके रचयिता राजस्थान निवासी हीरानन्द सूरि हैं। यह सं. १४८६ की रचना है।
·    १८ श्रावकाचार- देवसेन नामक प्रसिद्ध जैन आचार्य ने ९३३ ई. मे इस काव्य की रचना की । इसके २५० दोहो मे श्रावक धर्म का प्रतिपादन किया है।

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